छग में माकपा की बढ़ी मुश्किलें, कांकेर के बाद कोरबा में सामूहिक इस्तीफा से उठे कई सवाल

सरगुजा क्षेत्र में भी असर पड़ने की संभावना

कोरबा। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी राजनैतिक तौर छतीसगढ़ में भले ही कोई खास पहचान नहीं रखती है पर उद्योग जगत खासकर कोयला खदानों में उसके मजदूर सन्गठन का मजबूत आधार है। सरगुजा क्षेत्र में किसानों के बीच सक्रिय गतिविधियां दिखती हैं, किंतु पिछले कुछ दिनों से माकपा का अंदरूनी विवाद बढ़ते ही जा रहा है।

एक सप्ताह पहले पार्टी के कांकेर इकाई के पार्टी सदस्यों के इस्तीफा के बाद अब कोरबा से भी भारी संख्या में पार्टी सदस्यों ने पार्टी नेतृत्व पर आर्थिक अनियमितता के आरोप लगाकर पार्टी से अलग कर लिया जिससे छतीसगढ़ राज्य में पार्टी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। इस बार पार्टी ने छत्तीसगढ़ के विधानसभा के चुनाव में 5 स्थानों से अपना प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। ठीक चुनाव की घोषणा के बाद एक-एक कर कई जिलों में पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ताओं के इस्तीफे ने माकपा की मुश्किलें बढ़ा दी है। पार्टी से नाराज वरिष्ठों की मानें तो दोनों ही इकाईयों के पार्टी सदस्यों ने मुख्य आरोप संजय पराते पर ही लगाया है। हालांकि कोरबा में संजय पराते के साथ प्रशांत झा एवं व्ही एम मनोहर जो कोयला श्रमिक संघ सीटू के महासचिव हैं, उन पर भी आरोप जड़ दिए गए हैं।
कयास यह लगाया जा रहा है कि इस्तीफा देने का सिलसिला और बढ़ सकता है क्योंकि पार्टी नेतृत्व के खिलाफ़ बस्तर से लेकर सरगुजा तक आम कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष है। खासकर संजय पराते के खिलाफ अनेकों जगह से पार्टी के नाम से अवैध वसूली करने का आरोप है और पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इन आरोपों को नजरंदाज कर रहा है जिसका खामियाजा पार्टी को चुकाना पड़ सकता है। पार्टी इन बातों को अगर ध्यान नहीं देगी तो और भी नुकसान उठाना पड़ेगा।
छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा में पार्टी सिम्बल से दो पार्षद निगम में चुनकर आये थे,हो सकता है पार्टी के पार्षद भी भविष्य में पार्टी से इस्तीफा दे दें।
सूत्रो के मुताबिक कोरबा जिला से और भी पार्टी सदस्य पार्टी से अपने आपको अलग कर लेंगे। सरगुजा जिले के इलाकों में भी पार्टी के कार्यकर्ताओं में पार्टी के राज्य नेतृत्व के कारण नाराजगी कभी भी विस्फोटक हो सकती है ।
पार्टी को इस वगाबत को रोकने के लिए कार्यकर्ताओं की बातों को सुनना होगा। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो हो सकता है अन्य जिलों के पार्टी सदस्य भी पार्टी से अपना नाता तोड़ सकते हैं।
माकपा जो एक ईमानदार और अनुशासित पार्टी होने का दम भरती है, उसका भी असली चेहरा अब जनता के सामने आने लगा है। इस पार्टी में भी अन्य बुर्जुआ पार्टी जैसे लोगों की तूती बोलने लगी है और ईमानदार, निष्ठापूर्वक काम करने वाले कार्यकर्ता आज पार्टी से बाहर होते जा रहे हैं।


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