0 CSEB के सहायक अभियन्ता के पुत्र का विवाह चर्चा में
कोरबा-सक्ती। आज जब आधुनिकता की चकाचौंध में अधिकांश लोग अपनी संस्कृति और रीति रिवाज को भुलाते जा रहे हैं तब एक सहायक इंजीनियर के इंजीनियर बेटे की शादी चर्चा का विषय बनी हुई है। यह शादी पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया संस्कृति की झलक को प्रदर्शित करते हुए संपन्न हुई जिसकी एक झलक आपको भी दिखा रहे हैं। शादी का कार्ड से लेकर बारात और मेहमानों की नवाजी भी पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया रंग में रंगी रही।
कोरबा के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह में पदस्थ सहायक अभियंता कमलेश चन्द्रा के पुत्र मयंक चन्द्रा जो कि रेलवे में इंजीनियर हैं, का विवाह पड़ोसी जिला सक्ती के ग्राम सेरो निवासी मनहरण लाल चन्द्रा की पुत्री प्रियंका के साथ 18 फरवरी को संपन्न हुआ। प्रियंका एम्स भुवनेश्वर में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर पदस्थ हैं। नौकरी पेशा कमलेश चन्द्रा और पुत्र तथा पुत्रवधू के भी नौकरीपेशा होने के बावजूद यह शादी न सिर्फ सादगी से सम्पन्न हुई बल्कि क्षेत्रवासियों और मेहमानों के दिलों में अपनी छाप छोड़ दी है।
मयंक और प्रियंका की शादी का कार्ड छपा तो वह पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया भाषा-बोली में रहा “सुघ्घर बिहाव के नेवता”। दूल्हा बने मयंक की बारात निकली तो किसी चमचमाती महंगी गाड़ी में नहीं बल्कि बैलगाड़ी में।
मयंक अपने पिता के साथ बैलगाड़ी में बारात लेकर बारातियों के साथ नाचते-गाते प्रियंका के घर पहुंचा। विवाह की सारी रस्में संपन्न होने के बाद 19 फरवरी को आशीर्वाद व प्रीतिभोज समारोह आयोजित हुआ।
नव दम्पत्ति को आशीर्वाद देने पहुंचे मेहमानों के दिल बाग बाग हो गए जब उन्होंने पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया परिवेश में खुद को पाया। समारोह के स्वागत द्वार पंडाल से लेकर स्टेज और भोजन की पूरी व्यवस्था छत्तीसगढ़िया संस्कृति, खान- पान, रहन-सहन, वेशभूषा में रंगी हुई नजर आई।
मुख्य स्टेज में जहां छत्तीसगढ़िया कलाकृति उकेरी गई थी वहीं स्टेज को फूलों की बजाय परंपरागत पर्रा, सूपा, टोकनी,दौरी, घास,झाड़ू आदि से सजाया गया था जिन्हें लक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है।
छप्पर की छानी में विभिन्न छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्टाल लगाए गए थे जहां मेहमानों को पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़िया व्यंजनों का स्वाद मिला, जिसमें बोरे बासी भी शामिल रहा। चिला, मूंग भजिया,चना चरपटी, फरा,खुरमी, तिखुर, डुबकी, बटकर की सब्जी,जिमी कांदा , ननकी बड़ी, प्याज भाजी, चावल दाल, बिजौरी,अइसा, ठेठरी, गुचकुलिया, लाई बड़ी, मुनगा-झुनगा-बड़ी, उसना चावल, मुर्गा लड्डू आदि व्यंजन परोसे गए।
यही नहीं खाने की प्लेट पर पत्तल सजाए गए थे। कुर्सी की जगह खाट बिछाई गई थी। भोजन परोसने से लेकर कैटरिंग के कार्य में लगे लोग पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़ी परिधान, वेशभूषा में नजर आए।
लालटेन की टिमटिमाती रोशनी मेहमानों को लुभा रही थी।
समारोह में ना डीजे, ना फिल्मी गानों का शोर था बल्कि लोकरंग अर्जुंदा के कलाकारों के द्वारा छत्तीसगढ़िया गीतों की प्रस्तुति दी जाती रही। मेहमानों ने इस अवसर पर खूब सेल्फी ली और वीडियो/रील भी बनाया।
सहायक अभियंता कमलेश चन्द्रा ने बताया कि आज लोग अपनी छत्तीसगढ़िया संस्कृति, व्यंजन, खानपान, वेशभूषा आदि को भूलते जा रहे हैं। ऐसे में उन्होंने इस विवाह आयोजन के माध्यम से लोगों के मन में छत्तीसगढ़िया संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए विचार रखकर इस तरह का आयोजन किया। उन्हें इस बात की खुशी है कि वे अपनी संस्कृति को रेखाँकित कर पाए। समारोह में पहुंचे सभी मेहमानों ने इसे सराहा है।
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