0 सरकार भूपेश बघेल की रही हो या विष्णु देव् की हो, इन्हें फर्क नहीं पड़ता
कोरबा। छत्तीसगढ़ राज्य में कोरबा एक ऐसा जिला है जहां पूरा का पूरा सिस्टम और प्रशासनिक व्यवस्था चंद रेत माफियाओं से हार मान कर बैठ गया है। इन रेत माफिया के ऊपर किस प्रभावशाली शख्स का हाथ है, यह तो संरक्षण लेने और देने वाला ही जाने लेकिन कानून के हाथ भी इन तक जाकर थम गए हैं तो यह व्यवस्था को शर्मसार कर देने जैसा ही है।
अभी 15 अक्टूबर तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदियों को खोदने पर प्रतिबंध लगा दिया है, इसके बावजूद उंगलियों पर गिने जा सकने वाले नामचीन नदी तटों से दिन दहाड़े जेसीबी लगाकर दिन भर में सैकड़ों ट्रैक्टर रेत खोदी जा रही है। मैदानी इलाकों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। दिनदहाड़े तो चोरी का खेल चल ही रहा है, रात के अंधेरे में भी रेत की चोरी जारी है।
सरकारी अवकाश के दिनों में तो नजारा और अलग रहता है। खनिज व्यवसाईयों सहित आम लोगों को यह पता है कि बरसात के दिनों में रॉयल्टी जारी नहीं होती इसलिए रेत की कीमत 3500 से 4000 रुपए प्रति ट्रैक्टर पहुंच गई है लेकिन उन्हें यह भी पता है कि जो रेत बाजार में बिक रही है वह चोरी की है।
भंडारण तो इन्हीं चोरी की रेत से गुलजार हो रहे हैं, किंतु प्रशासनिक तंत्र, मुखबिर तंत्र, खुफिया तंत्र से लेकर टास्क फोर्स, राजस्व, खनिज का मैदानी अमला यह सब तो खामोश बैठे हैं। साथ ही वह जनप्रतिनिधि भी खामोश हैं जिनके इलाके में धड़ल्ले से नदियों को बेदर्दी से खोदा जा रहा है।
0 क्या जान लेकर ही मानेंगे,फिर जागेगा प्रशासन
नदियों को खोदने का खामियाजा किसी की जान लेकर भी सामने आ सकता है क्योंकि रेत खोदने के कारण गहराई बढ़ जाने से इसका अंदाजा नहीं मिल पाता और डूबने का खतरा बना रहता है। वैसे इन माफियाओं को सरकार का कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जिसकी भी सत्ता आती है,मुखिया कितना ही कड़क क्यों न हो उसमें किसी न किसी का हाथ पकड़ कर अपने कारनामों को अंजाम देते ही रहते हैं।
बरमपुर और राताखार,भिलाईखुर्द की यह तस्वीर/वीडियो बताने के लिए काफी है कि कानून-कायदा चाहे दिल्ली का हो चाहे राज्य का, यह सब इनके ठेंगे पर ही है। चोरी की रेत से सरकारी-निजी काम हो रहे हैं। सरकारी काम मे रेत 3500 से 4000 प्रति ट्रेक्टर खरीद कर जहां निर्माण की लागत बढ़ाने का काम हो रहा है वहीं रायल्टी राजस्व का नुकसान भी किया-कराया जा रहा है।
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